Wednesday, November 14, 2007

क्षणभंगुरता

देख अर्चना मुस्कराहट की, 
पुष्प अधरपतियों पे, 
काँप उठता है हृदय, 
ये सोच, 
कि कल भी हँसे थे कुछ फुल, 
हाँ इसी तरह ।। 

  कलमबधः मई १८,२००७

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  मइयत-ए-माबदौलत की की गुल पुशार मैंने   अपने मज़ार पे मैंने चढ़ाये जा के फूल , ये सोच आदमी ठीक था इतना बुरा न था। था...