कह न पाऊँ,
इक अटकी हुई सी बात।
आतुर हुई सौबार कह दूँ,
पर मन ने दिया न साथ।।
कहना ही होगा,
अपने मूँह से,
कयूँ सो नां पाऊँ हर रात,
है याद सताती,
नींद ना आती,
करवट बदलूं तलक परभात।।
वो अनाङी,
कुछ सम्झ न पाये,
आँचल लुडकाऊँ,
उठाऊँ हाथ।
नैन से नैन मिलाए नां बैरी,
मैं मन तङपूँ, सुलगूँ गात।।
हे राम उसे दे कुछ तो सुबुधी,
या बंधा ना मेरी ये आशा,
मेरे प्यार को यूँ गूंगा ना कर,
देदे मुझे कहने को परिभाषा ।।
कलमबधः नंवम्बर ११,२००७
2 comments:
bahut achcha geet bana hai banvara ji.
aap ko pahlee baar blog par dekha.
mere blog par aane ke liye dhnyawaad.
शुभ प्रभात
लिखना क्यों बंद किया
चलू करो
नहीं तो.....
सादर
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