Wednesday, November 14, 2007

मैनें बाप चुना

जब भी मैनें अपना बाप चुना,
ना जाने कितना कहा सुना।

ईक बाप वहाँ था जब आँख खुली,
मैने उसे कहा 'बा' तुतली तुतली,
पर जाने कहाँ वो चला गया।
माँ कहती रचाया उसने व्याह नया।।

फिर मैने सोचा, कुछ भी हो,
बाप तो चाहिये, इक ना दो।
माँ बोली भगवान अब बाप तेरा,
रक्षक, भक्षक तेरा ओर मेरा।।

पर कैसा बाप है अन्जान गुनी,
ईक बात मेरी उस ने ना कभी सुनी।
तूँ देख ना पायेगा उस को कभी,
तेरा बाप है वो, ये जाने सभी।।

फिर इक दिन गलियों में हुई चर्चा,
बाप बनने चला कोई, निकला पर्चा।
मैं तो पहले ही इस ताक में था,
कोई बाप चुन सकूँ, गर हो ऍसा।।

माँ बोली ये 'बाप' वो नही बेटा,
ये भक्षक है, इसे कहते नेता।
पर मेरे मन में थी आग लगी,
लोगों की बातें सुन कुछ आस बधी।।

बीना सोचे समझे मत दे डाला,
उत्र हुआ आलिंगन को, जैसे कुंवारी बाला।
हुऎ उजागर, शिघ्र ही बाप के दांत,
पेट में आन्तों की बंध गई गांठ।।

मां बोली अब ना इसका उपचार कोई,
सहने होंगे, नऎ अत्याचार कई।
भोगो, इस लाडले बाप का प्यार,
न कहती थी चुनना सब सोच बिचार।।

अब सोचता हूँ, अपना करा-धरा,
ऎसे बाप बीना था क्या रूका पङा।
इस बाप का गला अब कैसे धोटूँ,
तोबा,
फिर ऎसे बापों से कर लूँ।।

अब बिन बिचार मत ना दूँगा कभी,
जो सही होगा, और हो जिन्दा दिल भी।
जनता की सोचे, ना अपना पेट भरे,
देश को बांधे, ना इसको गिरवी धरे।।

ये पाँच साल तो कैसे भी पूरे कर लूँगा,
अपना ही दोष जान, सीने पे पत्थर धर लूँ गा।
अगर फिर कभी इस कमीने ने मत मांगा,
इस की तो मैं ऎसी तैसी कर दूँगा।।

कलमबधः जून २०,२००७

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  मइयत-ए-माबदौलत की की गुल पुशार मैंने   अपने मज़ार पे मैंने चढ़ाये जा के फूल , ये सोच आदमी ठीक था इतना बुरा न था। था...