गांधी का और नेहरू का, वो संक्लप अभी अधूरा है,
पूरा नहीं हुआ, काश्मीर में हो या वो अरूणाचल है।
अभिष्ट नेताओं को मत देखो, वे सब व्योपारी हैं,
बेच डालेंगें, देश की रेत तक, जो मात्रभूमी का आँचल है।।
आवाज उठाओ, तङागी कस लो, ओर मिलाओ हाथ से हाथ,
जङें हिला दो इस भ्रीष्टाचार की, और तोङ दालो ये बेचारीगी के बन्धन,
अगर अब न जागे, तो कुम्भकरण से सोये रहोगे अंनत तक,
अपना कर्म धर्म निभाओ तुम ही, तुझे ही सुल्झानी है तेरी उल्झन।।
मत देखो औरों के हाथों को, उन की आँखें षङयन्त्र लिये हैं,
आवाज देने पर दोङे आँवेंगे, घुसने की कब से हैं आस लगाये।
तुम बलवान बनो, इन्सान बनो, सत्यवान बनो, हिन्दोस्तान बनो,
यदि हम सब ऍक हैं तो फिर क्यों शत्रु अपने घर में घात लगाये।।
कलमबधः अगस्त ५,२००७
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